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Thursday 22 May 2014

क्या करना बाकी है.

इस जीवन के मूल्य अभी समझना बाकी है
क्या करते, क्यों करते और क्या करना बाकी है.

ईश्वर के बच्चे हैं हम ऐसा सब कहते हैं.
वो ही सबके हृदयों में छिपकर के रहते हैं.
अपने ही दिल में बस खुद से जाना बाकी है.
क्या करते, क्यों करते और क्या करना बाकी है.

बंधन में बंधकर ये मन भागे ही जाता है.
मोह, लोभ और क्रोध लिए दिल को भटकाता है.
चञ्चल, मूरख मन को वश में लाना बाकी है.
क्या करते, क्यों करते और क्या करना बाकी है.

दुष्कर हो चलना तब वो ही राह दिखाता है.
मानव कष्टों से लड़कर मंज़िल को पाता है.
राह मिल गयी है, बस मंज़िल पाना बाकी है.
क्या करते, क्यों करते और क्या करना बाकी है. 

8 comments:

  1. लाजवाब !
    प्रेरित करती रचना।

    सादर

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  2. कल 25/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  3. वाकई प्रेरक अभिव्यक्ति

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  4. This comment has been removed by the author.

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