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Saturday 29 June 2013

खुद से ही बातें करने लगी हूँ दीवानेपन की बेझिझक ।

अम्बर से गिरते बूंदों के मोती, इनमे है ऐसी एक अदा ।
धरती से मिलकर बन गये माटी, जैसे कभी ना थे जुदा ।
सोंधी सी खुशबू कहती है हमसे, क्या सोचते हो अब तलक ।
छोड़ो खुदी को, जा मिलो उनसे, तुम भी बनो सोंधी महक ।

खुद से ही बातें करने लगी हूँ दीवानेपन की बेझिझक । 

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