बहुत हो गया पाकर खोना, बहुत हो गया विषम विषाद।
विष पीकर भी सम को पाना, इतना ही है रखना याद।
खड्ग द्विपक्षी बन निकली है यह अन्तर की आग दोगली।
जलकर कटी या कटकर जल गयी नश्वर जग की छवि रुपहली?
बर्बादी के बाद हो रहा प्रणव-प्रकाश-मनन आबाद।
विष पीकर भी सम को पाना, इतना ही है रखना याद।
विष पीकर भी सम को पाना, इतना ही है रखना याद।
खड्ग द्विपक्षी बन निकली है यह अन्तर की आग दोगली।
जलकर कटी या कटकर जल गयी नश्वर जग की छवि रुपहली?
बर्बादी के बाद हो रहा प्रणव-प्रकाश-मनन आबाद।
विष पीकर भी सम को पाना, इतना ही है रखना याद।