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Thursday 2 February 2012

मेरे सपने

नन्हीं बच्ची बचपन में परियों की कहानी सुनती है.
उसका होगा राजकुँवर एक स्वप्न सुनहरे बुनती है.
छोटे छोटे उसके सपने पूरे भी हो जाते हैं.
जो उसके परिवारजनों को अद्भुत सुख दे जाते हैं.
पर बचपन से परीकथाएँ मुझे लुभा ना पाई हैं.
सदा वीर गाथाओं ने आँखों की चमक बढाई है.
कर्ण, विवेकानन्द, शिवाजी औ सुभाष बस गए जहाँ.
उन मेरे विशाल स्वप्नों में राजकुँवर का स्थान कहाँ.
सपने देखे ऊँचे ऊँचे, आसमान तक जाने के.
बड़े बड़े नामों के संग अपना भी नाम बनाने के.
जैसे जैसे बड़े हुए और खुद को सक्षम पाया.
कुपित नियति ने तब विरोध में अपना खेल दिखाया.
ऐसी मिली चुनौती कि सपनों ने साथ ही छोड़ दिया.
समझौते करते करते जीवन का रुख ही मोड़ दिया.
कुछ सपने लम्हों ने तोड़े, कुछ तोड़े हालातों ने.
कुछ हमने खुद ही छोड़ दिए, कुछ तोड़े रिश्ते नातों ने.
छूट गया जीवन का सम्बल, बचा नहीं कुछ खोने को.
धृष्ट मनोबल फिर भी देता नवीन स्वप्न संजोने को.
हैं सपने थोड़े छोटे, खुद को साबित कर पाने के.
आसमान तक ना पहुँचे तो उच्च शिखर तक जाने के.
अनदेखा भविष्य है फिर भी क्यों कोई रोके मुझको.
गति मन्थर है, दुर्गम पथ है. जीवन मेरा, क्या तुझको?

5 comments:

  1. बहुत ही अच्छा और शानदार लिखा है !


    सादर

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  2. क्या बात कही है... बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!!

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  3. बहुत खूब निशिता बधाई और शुभकामनाएं |

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  4. निष्ठा जी मैंने जल्दी में निशिता लिख दिया क्षमा कीजियेगा |

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  5. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.

    कृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen"पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.

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