मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
ये मन अतीत की कहता है, थोडा भविष्य बतलाता है.
आँखों को आँसू, होंठों को मुस्कान कभी दे जाता है.
आँसू, मुस्कान सभी मेरे, आनन्दित मुझको करते हैं.
मेरे सुख दुःख के साथी हैं, विश्वास दिलाया करते हैं.
मैं लिखती हूँ जब वर्तमान का राक्षस मुझे डराता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
मेरे दिमाग को फुसलाकर ये इधर उधर भटकाता है.
कितनी बातें मन कहता है, ना जाने कहाँ विचरता है.
सीमा, बंधन और रस्मों के रोके से कहाँ ठहरता है.
लिखकर इसको बहलाती हूँ, कुछ आशाएं दिखलाती हूँ.
और कभी कभी इन आशाओं के संग खुद को पा जाती हूँ.
मैं लिखती हूँ जब जीवन-पथ नैराश्य-तमस में जाता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
कुछ सपनों जैसे सपने हैं, कुछ सच्चाई सी बातें हैं.
कुछ सुखद सुनहरी सुबहें हैं, कुछ अंधकारमय रातें हैं.
खुश हो जाती हूँ कभी और फिर मुक्त कंठ से गाती हूँ.
और कभी कभी भ्रम में पड़कर केवल लेखनी चलाती हूँ.
मैं लिखती हूँ कोरा कागज़ जब खुद को कोरा पाता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
ये मन अतीत की कहता है, थोडा भविष्य बतलाता है.
आँखों को आँसू, होंठों को मुस्कान कभी दे जाता है.
आँसू, मुस्कान सभी मेरे, आनन्दित मुझको करते हैं.
मेरे सुख दुःख के साथी हैं, विश्वास दिलाया करते हैं.
मैं लिखती हूँ जब वर्तमान का राक्षस मुझे डराता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
मेरे दिमाग को फुसलाकर ये इधर उधर भटकाता है.
ये मन अतीत की कहता है, थोडा भविष्य बतलाता है.
ReplyDeleteआँखों को आँसू, होंठों को मुस्कान कभी दे जाता है.
बहुत खूब!
2012 की आपकी यह पहली पोस्ट अच्छी लगी। आशा है वादे के अनुसार लिखती रहेंगी। :)
सादर
कुछ सपनों जैसे सपने हैं, कुछ सच्चाई सी बातें हैं.
ReplyDeleteकुछ सुखद सुनहरी सुबहें हैं, कुछ अंधकारमय रातें हैं.
...बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...शब्दों, भाव और लय का उत्कृष्ट संयोजन..
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteऔर कभी कभी भ्रम में पड़कर केवल लेखनी चलाती हूँ.
ReplyDeleteमैं लिखती हूँ कोरा कागज़ जब खुद को कोरा पाता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है. ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
कुछ सपनों जैसे सपने हैं, कुछ सच्चाई सी बातें हैं.
ReplyDeleteकुछ सुखद सुनहरी सुबहें हैं, कुछ अंधकारमय रातें हैं.
खुश हो जाती हूँ कभी और फिर मुक्त कंठ से गाती हूँ.
और कभी कभी भ्रम में पड़कर केवल लेखनी चलाती हूँ.
मैं लिखती हूँ कोरा कागज़ जब खुद को कोरा पाता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है
superb....
कल 09/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मेरे सुख दुःख के साथी हैं, विश्वास दिलाया करते हैं.
ReplyDeleteमैं लिखती हूँ जब वर्तमान का राक्षस मुझे डराता है.
sunder rachna ...lekhan bhay chheen leta hai ....nishchay hi ...
वाह बहुत ही सुन्दर...
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteमन खुश हो या उदास , जब कुछ कहे बिना नहीं रहा जाता , मन की बातें लिख जाता है!
ReplyDeleteअच्छी रचना !
मन के भाव लिख दिए जाएँ तो मन को सुकून आ जाता है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteप्रेरणा देने के लिए सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteमुझे आशा नहीं थी की मेरी कविता को इतनी प्रशंसा मिल सकती है.
मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना ...!
ReplyDeleteकुछ सपनों जैसे सपने हैं, कुछ सच्चाई सी बातें हैं.
ReplyDeleteकुछ सुखद सुनहरी सुबहें हैं, कुछ अंधकारमय रातें हैं.
खुश हो जाती हूँ कभी और फिर मुक्त कंठ से गाती हूँ.
और कभी कभी भ्रम में पड़कर केवल लेखनी चलाती हूँ.
मैं लिखती हूँ कोरा कागज़ जब खुद को कोरा पाता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
नि:शब्द करती पंक्तियाँ.....वाह !!!