मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
ये मन अतीत की कहता है, थोडा भविष्य बतलाता है.
आँखों को आँसू, होंठों को मुस्कान कभी दे जाता है.
आँसू, मुस्कान सभी मेरे, आनन्दित मुझको करते हैं.
मेरे सुख दुःख के साथी हैं, विश्वास दिलाया करते हैं.
मैं लिखती हूँ जब वर्तमान का राक्षस मुझे डराता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
मेरे दिमाग को फुसलाकर ये इधर उधर भटकाता है.
कितनी बातें मन कहता है, ना जाने कहाँ विचरता है.
सीमा, बंधन और रस्मों के रोके से कहाँ ठहरता है.
लिखकर इसको बहलाती हूँ, कुछ आशाएं दिखलाती हूँ.
और कभी कभी इन आशाओं के संग खुद को पा जाती हूँ.
मैं लिखती हूँ जब जीवन-पथ नैराश्य-तमस में जाता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
कुछ सपनों जैसे सपने हैं, कुछ सच्चाई सी बातें हैं.
कुछ सुखद सुनहरी सुबहें हैं, कुछ अंधकारमय रातें हैं.
खुश हो जाती हूँ कभी और फिर मुक्त कंठ से गाती हूँ.
और कभी कभी भ्रम में पड़कर केवल लेखनी चलाती हूँ.
मैं लिखती हूँ कोरा कागज़ जब खुद को कोरा पाता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
ये मन अतीत की कहता है, थोडा भविष्य बतलाता है.
आँखों को आँसू, होंठों को मुस्कान कभी दे जाता है.
आँसू, मुस्कान सभी मेरे, आनन्दित मुझको करते हैं.
मेरे सुख दुःख के साथी हैं, विश्वास दिलाया करते हैं.
मैं लिखती हूँ जब वर्तमान का राक्षस मुझे डराता है.
मैं लिखती हूँ जब मेरा मन चंचल व्याकुल हो जाता है.
मेरे दिमाग को फुसलाकर ये इधर उधर भटकाता है.