ख़ुश रह भी लेते हैं, ख़ुश हो भी नहीं पाते हैं.
हम तो रह के भी दूर पास सबके रहते हैं.
न जाने कैसे इतने फ़ासले हो जाते हैं.
किसी की बात को बिन बोले समझ लेते हैं.
किसी को चाह के भी समझ नहीं पाते हैं.
राह हो कितनी भी लम्बी चले हैं बिन बोले.
न जाने आज क्यूँ ये पाँव थके जाते हैं.
दिलों को जीत लिया करते थे हम पल भर में.
आज ढूंढा तो अपना दिल ही नहीं पाते हैं.
मुश्किलें लाख हों हम पायेंगे तुझे मंजिल!
मुश्किलों से बड़े गहरे हमारे नाते हैं.
हो जाएँ दूरियाँ तो कितने ग़म हो जाते हैं.
ख़ुश रह भी लेते हैं, ख़ुश हो भी नहीं पाते हैं.
सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteमुश्किलें लाख हों हम पायेंगे तुझे मंजिल!
ReplyDeleteमुश्किलों से बड़े गहरे हमारे नाते हैं.
हौसला कायम रहे तो हर मुश्किल छोटी पड जाती है………सुन्दर रचना।
मुश्किलें लाख हों हम पायेंगे तुझे मंजिल!
ReplyDeleteमुश्किलों से बड़े गहरे हमारे नाते हैं.
बहुत खूब!
सादर
हो जाएँ दूरियाँ तो कितने ग़म हो जाते हैं.
ReplyDeleteख़ुश रह भी लेते हैं, ख़ुश हो भी नहीं पाते हैं.
बहुत कुछ कह गयी ये पंक्तिया.....
राह हो कितनी भी लम्बी चले हैं बिन बोले.
ReplyDeleteन जाने आज क्यूँ ये पाँव थके जाते हैं.
lekin jab jyaada bolne vale sath hon to bebaat hi thakan hone lagti hai....khoobsoorat...