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Thursday 21 March 2013

मैंने जीना सीखा

इस जीवन से लड़कर मैंने इस जीवन को जीना सीखा,
ग़म को मुस्कान भरी इन आँखों से हँसकर पीना सीखा।

आदत सी पड़ गयी लबों को जब झूठी मुस्कानों की,
तब इन होंठों ने जाने कब जी भर करके हँसना सीखा।

दुःख दुःख न रहे सुख बन बैठे, दर्दों ने खुद को झुठलाया,
जबसे हँसकर इन दर्दों के आँचल में ही सोना सीखा।

है प्यार मिला इतना जबसे, झोली कम सी पड़ जाती है,
सब तुझको खुद अर्पण करके, सर्वस्व यहीं पाना सीखा।


इस जीवन से लड़कर मैंने इस जीवन को जीना सीखा,
ग़म को मुस्कान भरी इन आँखों से हँसकर सीना सीखा।

5 comments:

  1. Doctor!
    I like this very very much!

    Get well soon!

    Regards

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  2. उसको सब कुछ अर्पण करके ही जीवन पाया जा सकता है ...
    लाजवाब छंद हैं सभी ... बहुत भावमय रचना ...

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  3. .बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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