कभी किसी ने देखा है क्या वीरों की आँखों में पानी.
फिर क्यूँ दुःख में और सुख में भी रोते हैं कितने ही जन,
क्या उनकी वीरता खो गयी या कायर है उनका मन?
बहुत है सोचा बहुत विचारा, क्या मैं भी कमज़ोर हो गयी,
कभी कभी तो हुआ है यूँ भी रोते रोते भोर हो गयी.
मैंने पूछा हर आँसू से रहते हो तुम मेरे संग,
दुःख में चल देते हो जैसे कभी नहीं थे मेरे अंग.
वो बोला मैं तेरा जाया तुझे बताने आया हूँ,
तेरे आँखों की कालिख को खुद से धोने आया हूँ.
हर आँसू दे गया मुझे एक नया भरोसा नवीन आस,
कहता था ये रात गयी अब सुबह सुनहरी बहुत है पास.
जिस आँसू को सबने माना निर्बल कायर और अधीर,
वह तो धीरज का प्रतीक है, सबसे निश्छल सबसे वीर.
उस छोटे से मोती का अस्तित्व ख़त्म हो जाता है,
तब जाकर मानव का मन अपनी निर्मलता पाता है.
वाह वाह …………बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सीख ..
ReplyDelete♥
ReplyDeleteवाह वाऽऽह !
बहुत सुंदर निष्ठा जी !
आंसुओं को आह में ढलने देने कि जगह आस और धीरज का प्रतीक बना लिया … ख़ूब !
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
अरे लगता है यह पोस्ट मुझसे पढ़ने से छूट गयी। देर से आने के लिए माफी चाहता हूँ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है।
विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
sabhi ko bohot dhnyawad :)
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