बैठे होंगे और लगेगा जी के तू क्या पायेगा
कहते थे हिम्मत से अपनी समय बदल डालेंगे हम
कहाँ पता था समय विषैला हिम्मत को खा जायेगा
घूम रही है धरा धुरी पर घूम रहे हैं सारे लोग
रुकी हुयी मैं एकाकी कोई तो मार्ग बताएगा
सोचा मन में क्या लिख डाला जो सोचा क्या सच ही है
क्या यह मेरा जीवन सच में व्यर्थ ही चला जायेगा
उत्तर पाया नहीं नहीं ऐसा न कभी होने दूंगी
कभी हटेगा अन्धकार भी कभी तो सूरज आयेगा
भले खा गया हो हिम्मत को समय सरीखा काला सांप
पर मन का विश्वास सर्प ये कभी नहीं खा पायेगा
हार तभी है जब मन हारे मन जीते तो वो है जीत
सोचा न था खुद मन ही ये सब मन को समझाएगा
बुरा समय हो या अच्छा हो नियत बदलता रहता है
अब तो ये ही समय पुराना नए समय को लायेगा.
बुरा समय हो या अच्छा हो नियत बदलता रहता है
ReplyDeleteअब तो ये ही समय पुराना नए समय को लायेगा.
बहुत बढ़िया।
सादर
हार तभी है जब मन हारे मन जीते तो वो है जीत
ReplyDeleteसोचा न था खुद मन ही ये सब मन को समझाएगा
बुरा समय हो या अच्छा हो नियत बदलता रहता है
अब तो ये ही समय पुराना नए समय को लायेगा..
kin shabdo se tarif karu in paktiyo ki...
bas itna hi kahunga ...bahut hi gahrai me dub kar likha gaya hi ise.!!
bahut-2 badhai apko.
बुरा समय हो या अच्छा हो नियत बदलता रहता है
ReplyDeleteअब तो ये ही समय पुराना नए समय को लायेगा.
....सकारात्मक सोच लिए बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
कल 12/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सकारात्मक सोच ........ सुन्दर प्रस्तुति .........
ReplyDeleteसुंदर शब्दों मे ढाला है ! उत्तम रचना |
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति और शब्द चयन |
ReplyDeleteबधाई
आशा
sakaratmak soch ko darshati behad uttam abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ।
ReplyDelete.......................बदलता रहता है
ReplyDeleteअब तो ये ही समय पुराना नए समय को लायेगा.
सकारात्मकता कायम रहे...
बढ़िया अभिव्यक्ति...
सादर...
वाह ....बहुत सुन्दर सोच
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