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Saturday, 29 June 2013

खुद से ही बातें करने लगी हूँ दीवानेपन की बेझिझक ।

अम्बर से गिरते बूंदों के मोती, इनमे है ऐसी एक अदा ।
धरती से मिलकर बन गये माटी, जैसे कभी ना थे जुदा ।
सोंधी सी खुशबू कहती है हमसे, क्या सोचते हो अब तलक ।
छोड़ो खुदी को, जा मिलो उनसे, तुम भी बनो सोंधी महक ।

खुद से ही बातें करने लगी हूँ दीवानेपन की बेझिझक । 

Thursday, 21 March 2013

मैंने जीना सीखा

इस जीवन से लड़कर मैंने इस जीवन को जीना सीखा,
ग़म को मुस्कान भरी इन आँखों से हँसकर पीना सीखा।

आदत सी पड़ गयी लबों को जब झूठी मुस्कानों की,
तब इन होंठों ने जाने कब जी भर करके हँसना सीखा।

दुःख दुःख न रहे सुख बन बैठे, दर्दों ने खुद को झुठलाया,
जबसे हँसकर इन दर्दों के आँचल में ही सोना सीखा।

है प्यार मिला इतना जबसे, झोली कम सी पड़ जाती है,
सब तुझको खुद अर्पण करके, सर्वस्व यहीं पाना सीखा।


इस जीवन से लड़कर मैंने इस जीवन को जीना सीखा,
ग़म को मुस्कान भरी इन आँखों से हँसकर सीना सीखा।