सर्वाधिकार सुरक्षित !

सर्वाधिकार सुरक्षित !
इस ब्लॉग की किसी भी पोस्ट को अथवा उसके अंश को किसी भी रूप मे कहीं भी प्रकाशित करने से पहले अनुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें

Friday 25 November 2011

दूरियाँ

हो जाएँ दूरियाँ तो कितने ग़म हो जाते हैं.
ख़ुश रह भी लेते हैं, ख़ुश हो भी नहीं पाते हैं.

हम तो रह के भी दूर पास सबके रहते हैं.
न जाने कैसे इतने फ़ासले हो जाते हैं.

किसी की बात को बिन बोले समझ लेते हैं.
किसी को चाह के भी समझ नहीं पाते हैं.

राह हो कितनी भी लम्बी चले हैं बिन बोले.
न जाने आज क्यूँ ये पाँव थके जाते हैं.

दिलों को जीत लिया करते थे हम पल भर में.
आज ढूंढा तो अपना दिल ही नहीं पाते हैं.

मुश्किलें लाख हों हम पायेंगे तुझे मंजिल!
मुश्किलों से बड़े गहरे हमारे नाते हैं.

हो जाएँ दूरियाँ तो कितने ग़म हो जाते हैं.
ख़ुश रह भी लेते हैं, ख़ुश हो भी नहीं पाते हैं.

Tuesday 8 November 2011

मैं ही मैं को पा जाऊं

जी करता है खट्टी मीठी यादों में गुम हो जाऊं ,
कोई खोज न पाए मुझको बस मैं ही मैं को पा जाऊं.

उस बचपन में जाकर माँ के आँचल में फिर छिप जाते. 
और हाथ पकड़कर नाना का हम चाट बताशे खाते.
कंधे पर चढ़कर पापा के मैं फिर अम्बर को पाऊं.
कोई खोज न पाए मुझको बस मैं ही मैं को पा जाऊं.

जाते थे विद्यालय पढने और यारों से मिलते थे.
थी कहाँ पढाई, बस उल्टी सीधी बातें करते थे.
उन छोटी छोटी बातों पर फिर जी भर के हँस पाऊं.
कोई खोज न पाए मुझको बस मैं ही मैं को पा जाऊं.

और कैंटीन में जाकर के वो रोज़ समोसे खाना.
पकडे जाने पर यारों के संग धूप में सजा पाना.
और छुट्टी होते ही फिर से भागो भागो चिल्लाऊं.
कोई खोज न पाए मुझको बस मैं ही मैं को पा जाऊं.

जीते थे हर पल को खुल के, थी ना चिंता जीवन की.
सबकी बातें सुन लेते थे, करते थे अपने मन की.
जो होगा वो तो होगा ही, क्यूँ आज बिगाड़े जाऊं.
कोई खोज न पाए मुझको बस मैं ही मैं को पा जाऊं.

लगता था तब कि ये जीवन हँसते हँसते बीतेगा.
हम सबसे अच्छे हैं, कैसे कोई हमसे जीतेगा.
"सब संभव है गर चाहें" यह विश्वास दोबारा पाऊं.
कोई खोज न पाए मुझको बस मैं ही मैं को पा जाऊं.