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Friday 23 September 2011

आँसू

सुना था ऐसा कि आँसू है कमज़ोरी की एक निशानी,
कभी किसी ने देखा है क्या वीरों की आँखों में पानी.
फिर क्यूँ दुःख में और सुख में भी रोते हैं कितने ही जन,
क्या उनकी वीरता खो गयी या कायर है उनका मन?
बहुत है सोचा बहुत विचारा, क्या मैं भी कमज़ोर हो गयी,
कभी कभी तो हुआ है यूँ भी रोते रोते भोर हो गयी.
मैंने पूछा हर आँसू से रहते हो तुम मेरे संग,
दुःख में चल देते हो जैसे कभी नहीं थे मेरे अंग.
वो बोला मैं तेरा जाया तुझे बताने आया हूँ,
तेरे आँखों की कालिख को खुद से धोने आया हूँ.
हर आँसू दे गया मुझे एक नया भरोसा नवीन आस,
कहता था ये रात गयी अब सुबह सुनहरी बहुत है पास.
जिस आँसू को सबने माना निर्बल कायर और अधीर,
वह तो धीरज का प्रतीक है, सबसे निश्छल सबसे वीर.
उस छोटे से मोती का अस्तित्व ख़त्म हो जाता है,
तब जाकर मानव का मन अपनी निर्मलता पाता है.

Friday 9 September 2011

सोचा न था

सोचा न था जीवन में एक ऐसा भी दिन आएगा
बैठे होंगे और लगेगा जी के तू क्या पायेगा
कहते थे हिम्मत से अपनी समय बदल डालेंगे हम
कहाँ पता था समय विषैला हिम्मत को खा जायेगा
घूम रही है धरा धुरी पर घूम रहे हैं सारे लोग
रुकी हुयी मैं एकाकी कोई तो मार्ग बताएगा
सोचा मन में क्या लिख डाला जो सोचा क्या सच ही है
क्या यह मेरा जीवन सच में व्यर्थ ही चला जायेगा
उत्तर पाया नहीं नहीं ऐसा न कभी होने दूंगी 
कभी हटेगा अन्धकार भी कभी तो सूरज आयेगा
भले खा गया हो हिम्मत को समय सरीखा काला सांप
पर मन का विश्वास सर्प ये कभी नहीं खा पायेगा
हार तभी है जब मन हारे मन जीते तो वो है जीत
सोचा न था खुद मन ही ये सब मन को समझाएगा
बुरा समय हो या अच्छा हो नियत बदलता रहता है
अब तो ये ही समय पुराना नए समय को लायेगा.