कभी किसी ने देखा है क्या वीरों की आँखों में पानी.
फिर क्यूँ दुःख में और सुख में भी रोते हैं कितने ही जन,
क्या उनकी वीरता खो गयी या कायर है उनका मन?
बहुत है सोचा बहुत विचारा, क्या मैं भी कमज़ोर हो गयी,
कभी कभी तो हुआ है यूँ भी रोते रोते भोर हो गयी.
मैंने पूछा हर आँसू से रहते हो तुम मेरे संग,
दुःख में चल देते हो जैसे कभी नहीं थे मेरे अंग.
वो बोला मैं तेरा जाया तुझे बताने आया हूँ,
तेरे आँखों की कालिख को खुद से धोने आया हूँ.
हर आँसू दे गया मुझे एक नया भरोसा नवीन आस,
कहता था ये रात गयी अब सुबह सुनहरी बहुत है पास.
जिस आँसू को सबने माना निर्बल कायर और अधीर,
वह तो धीरज का प्रतीक है, सबसे निश्छल सबसे वीर.
उस छोटे से मोती का अस्तित्व ख़त्म हो जाता है,
तब जाकर मानव का मन अपनी निर्मलता पाता है.